वात विकार(व्याधि)

 आपने व्याधि ब्लॉग पढा होगा।। इसके शारीरिक व्याधि ब्लॉग में बताया है।
वात का अर्थ है जोडों में परेशानी।
आप सोच रहे होंगे, 

हम तो संतुलित आहार लेते हैं।
क्या कॉर्न फ्लैक्स या इस तरह का खाना संतुलित है?
जो पदार्थ जोड में जमा हो या शरीर में दर्द करे या चर्बी जमा करे।

 वो संतुलित है क्या? क
रे। 

वो पदार्थ जिनमे नाइट्रोजन होता है, जोड़ में या शरीर में दर्द करते हैं।


अगर इन्हे दिन में खायें तो
ये चलने हजम हो जाते हैं।

ये मटर, फली, छोले आदि हैं।
अमिया, कैथा, इमली, टाटरी ये सब भी हड्डियां कमजोर करते हैँ।
पॉलिश वाली दाल जिस पदार्थ में पॉलिश होती है, वो रसायन हड्डियों का कैल्शियम
जोडों से खींचकर नष्ट कर देता है। फलस्वरूप जोड़ सूज जाते हैं।
इससे खून के बहाव में रुकावट आती है।
उसी तरह जैसे हम किसी पा इप को, जिससे पानी बह रहा है,का नल नहीं बंद करें, एकदम पानी वाला
सिरा बंद कर दें

तो पाइप पर दबाव पड़ता है व नल से पाइप तेज आवाज से निकल जाता है

इससे खून का दबाव बढ जाता है। उच्च हो जाता है।

इससे ब्रेन हैमरेज व उच्च रक्त दाब,आधासीसी का दर्द, किडनी पर दबाव व

नाडी की अनियमित ता हो जाती है।

बहुत ज्यादा मात्रा में लेने से यूरिक अम्ल भी जोड में जम जाता है।

 इससे गठिया हो सकता है। 

इससे दिल दिमाग दोनों प्रभाव में आते हैं।

मैदा  से बने पदार्थ भी जमकर कब्ज कर गैस बनाते हैं व वायु  विकार करते हैं। 

खून का बहाव रुकने सेपैरों में झुनझुनी भी होती है। 

बिना पॉलिश की दाल रोज खाने से भी नुकसान नहींकरती है, बस रोज बदल बदल कर खाएं। 

हफ्ते में एक एक बार अगर हर दाल व फली बनाएं तो कोई हानि नहीं है। इससे हर प्रकार  कै होने वाले वातविकार से बचा जा सकता है। 

अब आप पित्त विकार भी जानना चाहेंगे। 

 तो अगला ब्लॉग पढें। 

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