अभी सीमित संसाधनों में भी जीवन सुचारु रूप से चल रहा है,तो इसी जीवन शैली को क्यों॰न अपनाया जाए।
प्रकृति अपनी हीलिंग स्वयं करती है।
जिस तरह चोट लगने पर घाव अपने आप भर जाता है,
उसी तरह
प्रकृति ने अपनी ओजोन पर्त में होने वाले विशाल छेद को भर दिया है।
हर नदी,सागर वमहासागर का
पानी अपने आप साफ ,स्वच्छ व निर्मल होगया है।
पशु पक्षी भी भौचक्के से हैं।
हुआ क्या?
भगवान की सबसे उत्तम रचना मानव ने,
जो कि जंतु जगतका एक सबसे विकसितप्राणी है
,ने
स्वयं को घरों में अपने व्यस्त कर लिया है।
अबअगर स्वस्थ रहना है तो,
इस लाॅकडाउन के नियमें का पालन सख्ती से अभी कई माह तक करना हौगा।
क्योंकि वायरस एक जंतु जगत का एक ऐसा प्राणी है जो,अकोशकीय है।केवल केंद्रक के पदार्थ से ही बनता है।
यह उसी तरह रहता है जैसे अन्य बीमारियों के बैक्टीरिया।
यह सुप्तावस्था में हमेशा मिट्टी में रहता है।
पर आधुनिक मानव प्रकृति ते स्थान पर
मशीनों का उपयोग करता है,अत:
इम्यूनिटी कम हो गई है।पन्नी के दुरुपयोग से
जमीन व पानी में रहने वाले जीवों को घुटन होती है वायरस भी उनमें से एक है।
वह अपनी निष्क्रिय सिस्ट अवस्था को॰फोड़कर बाहर आ गया है। यह कम इम्यूनिटी वाले एसी में रहने वाले,खनिज लवण रहित आर ओ(रिवर्स आस्मौसिस जिसमें झिल्ली से पानी के वो जरूरी लवण व खनिज निकल जाते हैं,जो ताकत देते हैं व बीमारमयों से रक्षा करते हैं)का पानी पीते हैं, मानवको अपना जीवन बनाते हैं और फटकर कई गुना बढ़ जाते हैं।
जानवर इनसे अछूते इसलिए हैं,क्योंकि वो हर मौसम व परिवर्तन कोमांप्रकृति की गोद में ही झेलकर अपने को मौसम के अनुकूल बना लेते हैं।
इससे बचने का बस एक उपाय ,
कम से कम बाहर निकलें।
सब कार्य व पेमेंट आॅनलाइन करें।
इससे आने जाने में समय बेकार नहीं होगा।
आॅफिस व शिक्षा संस्थान न खोलने बिजली व पानी व किराए का खर्च भी बचेगा।
आप परिवार के साथ अपने कार्य स्वयं करेंगे।
किसी इंफेक्शन का खतरा भी नहीं होगा।
बच्चों के लिए॰आया की जरूरत नहीं होगी व बच्चे भी पौष्टिक खाना खाएंगे।
इसे प्रकृति की चेतावनी व रहम समझकर ध्यान दें।
स्वस्थ रहें,
मस्त रहें,
लाॅकडाउन में व्यस्त रहें।
कोरोना को परास्त करें।
Aahar ved