अगर

अगर आपका कहीं घर है, उसे तोड़कर कोई घर बना ले, तो
आप क्या अपना घर उससे वापस नहीं लेंगे?
उत्तर अवश्य दें।

फिर बताएं कि राम मंदिर की बात सही नहीं है? इसमें कोई मुसलिम हिंदू बात नहीं है।
क्या कश्मीरी पं की तरह बेदखल नहीं कर रहे हैँ राम को राम के घर से।
किसी मुसलिम या हिंदू किसी को एतराज नहीं
होना चाहिए।

रंग दिया मैंने गेरुआ

भारत की मिट्टी का रंग गेरुआ है।
इससे देश भावना जागृत होती है। आपको जो कुछ करना है, देश के लिए।
देश है तभी आप सब हैं।ये हिन्दुस्तान है।
सिंधु नदी के किनारे
बसी सभ्यता का, सही उच्चारण न कर पाने के कारण,
सिंधु के बिगडे रूप को हिंदू कहते हैं।

योगी की दिल से है दुआ,
रंग दिया सबको गेरुआ।
वैसे भी किसी धर्म
के बिना बात करें ,
तो कोई बुरा नहीं है।

वातानुकूलित मशीन की जरुरत क्या है, ये शरीर की नमी खींच लेता है, 

जिससे बिना क्रीम व आइ ड्रॉप््स कै बिना नहीं है।
भोजन ठंडा रखने वाला
यंत्र


इसमे ठंडे किये पदार्थ अपनै पोषक तत्व खो देते हैं।
ताजेफल व शाक फायदा करते हैँ।

आप सबने देखा होगि कि जो लोग पृकृति के संपर्क में रहते हैँ वो कभी बीमार ही नहीं पडते हैं क्योंकि वो उन्हें अपने अनुकूल बना लेती है।
मेरे ब्लॉग फॉग व अन्य में देखें।
  मां

योगी ने शायद इसीलिये ससबको गेरुआ रंगकर स्वस्थ रहने का संदेश दिया है।

 tribal,   friends of our an cesters 

क्या है आपकी पहचान

 रंग और उमर कोई मायने नहीं रखते हैं,
केवल कर्म।
तभी तो आज सफेद बालों वाले मोदी, और योगी की दुनियां दीवानी है।
अब समय की नहीं कर्म की बात है,
सबको एक ही झटके में राजा भोज बना दिया।
अब तो जो भी तरीका अपनाऐं काला धन रखने वाले।
चलो, कोई बात नहीं धन तो सारा ही बाहर आ गया।
नहीं आ पाएगा, तो बेकार, क्योंकि आमदनी से ज्यादा में भी…. छापेमारी।
देश की सुरक्षा में सेंध, पता ही नहीं था किसी को।

क्योंकि मुद्रा तो बदल ही गयी।
पासा उल्टा ही पड़ा।
ये तो पुरानी सरकार भी कर सकती थी,

पर  किया नहीं।

हिंदू नाम रखकर भारत को लूटा। 
किसी को पढना नहीं आता, 

तो क्या हुआ, 9और 12 तक पास तो हैं।

अच्छी नौकरी नहीं है तो क्या हुआ बूचड़खाने तो खुले हैं।
जो कमाए वो कोई छीन ही तो लेगा  जब पढना न आए तो!
जोकोई काम नहीं तो नारे ही लगाकर कमाई है,
क्या हुआ जो भीड में जानवरों सा हांक दिया तो? 

 क्या हुआ जो भीड़ में..
क्या हुआ जो ये सब करके अगर कुछ हो जाए, 

या फलां ने कोई केस लगाया,
पढना तो आता नहीं,
जो कह दिया उसने लीडर ने
क्यों नहीं मानेंगे भले ही
वो ही करवा
र हे हों ?.
क्या हुआ हमारे घर उन्ही से चलता है और हम उनकी चाबी से?
क्या हुआ जो आप अपना जीवन दूसरे के मन से जीते हैं?
क्या कभी सोचा है 

की भगवान् ने हम सबको अपने जैसा क्यों बनाया कि आप मोहरे बने या अपना व अपने देश काभला-

बुरा देखकर अपने हिसाब से? चलें, आप एक बार अपना अध्ययन
करें तो बहुत कुछ ऐसा भी होगा जो आपने नहीं चाहा पर किया तो क्यों?
अब गलती कर रहे हैं तो सुधारें, टिप्पणी भी दें

मातृभक्त

कोई जरुरी नहीं की हम अकेले रहें,
शादी होते ही तबादला वापस उत्तर प्रदेश करा लिया।
अकेले तो बाहर रह आए पर अब नहीं।
मां बाप के साथ रहने की इच्छा। पर मां ये समझे तब।
सारा जीवन इसी में निकाल
दिया।
पर मां तो ऐसी कि
आफीसर बनने पर बेटा आगरा क्या गया।
मकान जो मां के नाम था,
बेचने का
विज्ञापन निकाल दिया।
बोर्ड
का इम्तिहान ,
आटो वाले को मनाकर दिया।
बडी बहन ने घर
में लडाई मचाई।
बाप को ह्रदयाघात हुआ।
तब भी शांती नहीं।
बहू बेटे को घर से निकालने की जुगाड़
। बेटा फिर वापस आया मां बाप के साथ रहने,
पर मां का वही रवैया, पैसे की अकड।
बेटे के पीछे पडी,
बहू बेटे को छोडकर मेरे पास रहो।
पैसे का घमंड इतना,
कि बहू को खाना बनाने
के पैसे ये कहकर दे
कि किसी नौकर के आगे

1000रू फेंको तो तलवे चाटेगा और दौडकर सारै काम करेगा।

तेरी इतनी अकड।

कोई नौकर होता तो ले लेता।
कमाती नहीं है, फिर भी नहीं लेती।कौई नौकर होता तो ले लेता।

अब क्या कहें, जब मां के दिमाग की। बेटा उसीकि, पैसे भी उसीके हुए कि नहीं।
बहन तो फोन पर चिंगारी लगाती, भडकाती रहती है,
यै नहीं मालूम कि बुढ़ापा कभी अकड से नहीं गुजरता।
बस अकेले मे बहू को बुलाकर अपनी बडी बेटी
की
तरह गाली देती है।
हर मां एक सी नहीं होती, हर बेटे का परिवार दुष्ट नहीं होता। बस अच्छे घर
को मां ने नर्क बना रखा है।
अब कोई उससे
नहीं बोलता है क्योंकि वो बस बहू को गाली
ही देती है।
ये दुनियां बहुत अजीब है। बेटा मां मां करे नहीं थकता। पर 

सब बच्चे बहू, सबसे खराब व्यवहार, 

क्या ऐसै बूढों क 

देशी गाय के दूध के फायदे

क्या आप जानना चाहते हैं

 😰 कि गाय के दूध से क्या क्या फायदे हैं :)?

कभी आपने सोचा तो होगा ही कि, गाय इतनी महत्व पूर्ण क्यों है?

कभी ये भी सोचें कि श्रीकृष्ण
हमेशा गाय क्यों चराते थे?

कभी शायद येभी सुना होगा
कि श्रीकृष्ण के पिता
नन्द बाबा के पास एक लाख गाएँ थीं।
कभी ये नहीं सुना होगा कि भैंस थीं।
कभी कृष्ण के छरहरे शरीर का राज पता लगा।
इतने राक्षस मारने के बाद भी
कभी कोई की कोई सुना कि हड्डी टूटी।
कभी कम उम्र सुनी।
बचपन में कंस से मल्ल युद्ध में भी कभी हार सुनी।
कभी आंखों की बीमारी सुनी
क्या कभी सोचा
कि ऐसा क्यों? उन्होने हमेशा गाय का दही दूध व मक्खन ही खाया।
शायद गाय का दूध नहीं,
गाय का दूध ही है।
केवल देशीगाय कि दूध, कहीं इसीलिए तो गाय को माता नहीं कहा गया है?

 
रोज गाय के दूध पीने  से भी मोटापा नहीं आता है।😍
गाय के घी खाने से भी मोटापा नहीं आता है।😍
गाय का दूध पीने से हड्डियां मजबूत होती हैं व कभी हड्डी की कोई बीमारी नहीं होती है।
गाय का दूध पीने से त्वचा चमकदार व चिकनी होती है।
गाय के दूध व घी खाने 😍
से दिल की बीमारियाँ नहीं होती हैं। 😍
गाय के गोबर व मूत्र से बनी खाद से फसल की पैदावार
दुगनी होती है व किसी रसायन की जरूरत नहीं होती है।😍
गाय के गोबर से गेरू मिलाकर जमीन लेपने से कीटाणु मर जाते हैं। 😍
सोते समय क्रीम के स्थान पर गाय का दूध, रूई से लगाने से त्वचा चमकदार रहती है।😘
अगर एक गाय से इतना फायदा है तो उसे क्या पिलना नहीं चाहिए?

मेरे बाबा तो गाय के घी को कांच की भूरी व नीली शीशी में धूप में रखते थे व आंख में रोज लगाते थे।उनको पूरी जिन्दगी, कोई भी बीमारी नहीं थी।

गाय का घी दोनों नाक में रात में एक एक बूंद डालने से कभी जुकाम खांसी व खर्राटों या साइनस की समस्या नहीं होती है।

स्त्री

सृष्टि जिसके बिना अधूरी है, 

पर बढते बढते खुद का दुरुपयोग करना शायद स्त्री की आदत बन गयी है।
दिन भर फालतू बैठकर बुराई करना,
फिर कहना कि फलाना हमसे कह रहा था।
ये एक समान्य दिनचर्या का एक अंग बनता जा रहा है।
सुबह उठकर इधर-उधर टहलना, खाने के बाद भी।
पूरे दिन बोलते-बोलते थकती भी नहीं हैं।
आज भी और शुरु हो जाए बस एक बार,
जब तक भट्टा नहीं बैठा देती, 

शांत ही नहीं होती,
कुछ ही गंभीरता से कार्य करती हैं।
जिस राज्य, 

  देश या घर में इनका शासन हो,

 चाहे वो कोई भी हो।।राजनीती व रोजमर्रि की जिंदगी में तो ही है, न हो तो एक बार ससरससरी नजर सब की दिनचर्या पर अवश्य फिराऐं व अगर हो तो  टिप् पणी में बताऐं भ ी।

 ऐसा नहीं है कि सब ऐसी ही हों।
ऐसा क्यों?

मुंह बंद रखें

कुछ को लगातार बोलनै की आदत होती है,

 उन्हें होश नहीं रहता है कि

 कब क्या बोलना है।

क्योंकि मां ने  चुप रहना,  

सिखाया ही नहीं। 

 अपने बच्चों को फालतू बोलने की कला न सिखाऐं।
कभी जबान को लगाम देना नहीं सिखाया।
एक बंदी को हमने कहते
सुना, 

कि

हम तो जब मेरे पती अपने किसी भी दोस्त के जाते हैं

 तोमैं जरूर जाती हूं

 

खूब तीन चार घंटे बातें भी करके आती हूँ। 

 पर पहले तो उनकी पत्नी व बैठतीं थीं, पर अब तो आतीं ही नहीं है।

 

न ही घर जाने पर नमस्ते करतीं है,  न ही बुलाने पर आती है।

वो अपने आपको जाने क्या समझतीं हैं कि बोलना व
आना ही बंद कर दिया।

उन्हें ये नहीं समझ आया कि वो ठलुआ हैं, 

अब एक दिन की बात हो तो चलता है। 

रोज पति के साथ लटक कर चलो, आदमियों की भी बातें होतीं हैं,

कुछ बंदे अपनी पत्नी को कभी भी कुछकहते ही नहीं हैं ।

 जिससे उनकी इज्जत उतरने लगती है व 

तब पता लगता है 

जब अगला संबंध तोड़ लेता है।

 ऐसी नौबत न आने दें, 

कहीं आप भी इसी आदत की शिकार तो नहीँ हैं।


गुझिया

सामग्री :
गाय का या भैंस का दूध,
गरी,
चिरौंजी,
मैदा,
पानी,
तेल
कसार:

पहले 2किलो
गाय का दूध लेते हैं।
फिर उसको
धीमी धीमी आंच पर
करछुल से
चलाकर गाढ़ा करते हैं।
जब वो
घी छोड दे तो समझ लो, कि खोया
बन गया।
अब ठंडा करते हैं।
फिर जितना खोया है उतनी ही शक्कर मिलाते हैं।
फिर
एक मुट्ठी चि रौं जी
व एक मुट्ठी कसी हुई गरी मिलाते हैं।

मैदा:
अब मैदा में थोड़ा थोड़ा मोयन(तेल)
देते हैं कि तलने पर कुरकुरा
हो व
हाथ से अच्छे से मसलते हैं,
व मुट्ठी
से बांधकर देखते हैं,
जब मैदा बंध जाऐ तब पानी मिलाकर
अच्छे से आटा गूंथते हैं व पिट्ठी बनाते हैं।
गूंथी हुई मैदा की लम्बी लोई बनाकर चाकू से पूड़ी बेलने लायक लोई बनाकर एक सूती कपड़े से ढक देते हैँ कि सूख न जाए।अब लोई की पूड़ी बेलकर एक चम्मच कसार भरकर, मैदा घुले पानी से चिपका एक सा कपड़े पर रखकर ढक देते हैँ। ऐसे हीसब बना लेते हैँ , 30 या40गुझिया बनाकर गरम तेल में धीमी आंच पर तलते हैं।

 

मां दुर्गा के नव वर्ष पर,  नौ रूप

28मार्च,विक्रम संवत 2074 आज है।
हम हिन्दू का नव वर्ष ,।
अब नौ दिन मां अलग अलग रुप में आती हैं।
जब मां ने पृथ्वी पर शत्र का संहार किया, वो यही दिन थे।
आज प्रभु श्रीराम का राज तिलक हुआ था।