कृष्ण वचन२(३७-३८):-
या तो तू युद्ध में मारा जाएगा,या जीतकर राज करेगा।इसके दुख सुख लाभ हानि समझकर तु युद्ध के लिये तैयार हो जा।
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गीतासार ,अध्याय-२२(३६-३६):-
कृष्ण वचन२(३५-३६):-
जिनकी नजर में तू सम्मानित था,वो तुझे निम्न व हारा हुआ मानेंगे व वहांलघुता को प्राप्त होने से बडा़ दुख क्या होगा?
ये तो मरने से भी बदतर है,तू युद्ॣ कर।
गीतासारअध्याय -२(33-34):-
कृष्ण वचन२(33-34):-
अपने लिए युद्ध ,धर्म युद्ध है,अगर तू नहीं करेगा तो अपकीर्ति का भागी होगा व आने वाली पीढ़ियां व लोग तुझे कायर कहेंगे।
गीतासार,अध्याय-२(31-32):-
क्षत्रिय धर्म में अपने लिए युद्ध से बढ़कर अपने आप मिलने वाला स्वर्ग का द्वार(जब कौरव सुई की नोक के बराबर भी जमीन न दे रहे हो तब) औरकोई नहीं है।
गीतासार,कृष्ण वचन,अध्याय -२(29- 30):-
हजारों में से कोई एक आत्मा कोआश्चर्य की भाँति देखता है सुनता है,वर्णन करता व कोई एक ही सुनता भी है। पर कोई इसे सुनकर भी नहीं जानता है।यह सबमें अवध्य है,फिर शोक करना व्यर्थ है।
गीतासार,कृष्ण वचन,अध्यीय-२(28):-
प्राणीजन्मने से पहले भी अप्रकट व मरने के बाद भी अप्रकट होता है ,इसलिए शोक नहीं करना चाहिए ।
गीतासार,कृष्ण वचन,अध्याय-२(26 -27):-
अगर आत्मा को सदा जन्मने व मरने वाला मानता है,तब भी शोक उचित नहीं है।क्योंकि जन्म लेने पर मृत्यु निश्चित है व मृत्यु होने पर जन्म अनिवार्य है।
गीतासार,कृष्ण वचन ,अध्याय-२(25):-
आत्मा को अचिनंत्य व विकार(दोष) रहित जानकर,तू उसके शोक(दुख) करने योग्य नहीं है।
गीतासार,कृष्ण वचन19:-
हाथी के ऊपर बैठे श्वान जब जंगल के राजा पर भौंकता है तो इसमेम दोष उस हाथी का है ,जिसने अपने ऊपर श्वान को बैठने का हक दिया।(किसी को इतना सर पर न चढ़ने दें कि वह आपका फायदा उठाए।
कृष्ण वचन18:-
आकाश की ओर थूकने वाले को वह मालूम होना चाहिए कि (क्रिया प्रतिक्रिया बल से हर वसुतु वापस चोट करती है ),उस पर ही थूकता है।