जब कोई स्तनधारी जीव कुछ खाता है, तो उसकी पाचन क्रिया मुंह में कौर रखते ही शुरु हो जाती है। मुंह में लार उसमें मिलकर उसे लसदार व निगलने लायक बनाती है।जैसे ही भोजन गले से नीचे उतरता है, पित्त नली से पित्त निकलकर उसमें मिल जाता है।पित्त थैली में
पि त्त रस होता है।
जब हम कभी गले में कडवा सा कुछ महसूस करते हैं, वही पित्त रस है।आप जितनी बार कुछ
खाते हैं, उतनी बार ये पित्त थैली क्रिया कर रस उगल देती है और ज्यादा मात्रा में तो कोई भी चीज नुकसान करती है।
इसलिए चराई की आदत अच्छी नहीँ है।
इससे पेट में जलन, अपच, कब्ज, संग्रहणी, अल्सर,
रक्तअतिसार , उल्टी चक्कर व अन्य बीमारियाँ होतीं हैं।
पाचन अग्नि दिन भर जलती है व हाइड्रो क्लोरिक अम्ल
भी उसमे मिल जाता है।
एक कौर खाने से भी उतना हीरस व अम्ल आंतों में छोड़ा जाता है जो पूरा थाली खाने में।
अब एक कौर खाने पर ये रस व अम्ल आंतों को पचाने लगती हैं। बार बार ये होने से घाव हो जाता है व जलन मचती है।
इससे थायराइड रक्तचाप मधुमेह आदि होती हें।
इसे पित्त विकार कहते हैं।
आज कल जो नये-नये रसायन वाले नाश्ते हैं, वो सब इस अम्ल व रस से क्रीया करते हैं। ये सब खून में मिलकर पित्त विकार करते हैं।
अब हम आगे कफ विकार पर विचार व्यक्त करेंगे।
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