रघूबीर बहुत खुश था, रोज0जंगल से लकडी काटकर बेचता व जीवनयापन करता, पर एक दिन अचानक से वौ बड़ा चिंतित व दुबलालगने लगा, वह बीमार सा रहने लगा, चेहरे कु रौनक चली गयी।पहले वह अपनी कमाई का एक भाग मंदिर में, एक अपने लिये, एक मां बाप का कर्ज उतारने में व एक बेटे को पालने में लगाता था। एक दम अचानक क्या हो गया।
बहुत पूछने पर उसने बताया कि
उसे धन से भरा ऐक घडा मिला है। अब वह अपने हिस्से का आधा भाग उसमें रखता है। पर वो है कि भरता ही नहीं! यह
कहीं निन्यानवे को सौ बनाने का चक्कर तो नहीं है?कहीं हम सब इसी में तो नहीं लगे हैं?