जिंदगी से जंग जारी है।
दुनियां पर कोरोना का कहर भारी है।
बडे नासमझ हैं वो लोग,
जो अकड़ में रहते हैं।
हम नहीं मरेंगे ये सरेआम कहते हैं।
कुल चार चरणहैं इसके।
अभी तो दो ही हुए हैं पूरे।
अगर नजरबंद नहीं हुए घरों में तो
ये आपको अपना घर बनाएगा ।
फिर आप कहां बस कोरोना ही नजरआएगा l
अपनी हस्ती मिटाने पर क्यूं तुला है ऐ इंसान, जब तू ही नहीं होगा तो, कहां की जन्नत और कहां का लोक। मंदिर व मस्जिद,चर्च और गुरुद्वारे, में अब नहीं भगवान । वो तो छंटनी कर रहा है अब क्योकि सांस लेना पड़ रहा है मातृ भूमि को भारी। अगर मुझपे है विश्वास,तो फोड़कर खम्भा दिखा, जहां है वहीं प्रहलाद की तरह मुझको बुला। भी बरसती है कयामत जब भी कयामत,
पट बंद हो जाते हैं घर के मेरे, चाहे अमरनाथ,केदारनाथ या हो कोई भी धाम।
नही कोई आहट,नहीं कोई भटकाव।
अब भी संभल जा ऐ इंसान । आहारवेद।
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