वसा व ट्राइग्लिसरीइड:-

वसा व ट्राईग्लिसराइड:-
ये दो प्रकार की होती है,
1संतृप्त वसा
2असंतृप्त वसा।
*संतृप्त वसा घुलकर शरीर से बाहर निकल जाती है व शरीर द्वारा प्रयोग में आ जाती है ।
*असंतृप्त वसा जगह जगह जमा हो जाती है।
सबसे आसान इसे नलियों में बहकर जमा होन लगता है।
*यह एल डी एल है
(कम घनत्व वाला जमवे वाला पदार्थ)।
**एक अन्य पदार्थ
ट्राई गिलसराइड होताहै।
*यह वहां बनता है जहाँ एस्टर्स होते हैं
*कार्बोक्जैलिक अम्ल व एल्कोहॅाल के आपस में क्रिया करने पर बनने वाला रासायनिक पदार्थ है।
*यह चिपचिपा व गाढा पदार्थ है।
*यह सीधे दिल को खून पहुँचाने वाली नस मे जमा होता है व मार्ग अवरूद्ध कर रक्त के बहाव को कम कर देता है।
*अब खून पहुँचाने के लिये शरीर को जोर लगाना पड़ता है,तो दाब बढ़ जाता है।
उसे रक्त चाप बढ़ना कहते हैं।
*अगर परहेज करें तो अधिक बनना ता बंद हो जाएगा,पर बने हुए को निकालना भी जरूरी है।
*इसके लिए भोजन में वह सब लें,जिनसे कार्बोक्जैलिक अम्ल व एल्कोहल न बने।
*सिरकाcH3COOH(एसेटिक अम्ल)एक कार्बौक्जैलिक अम्ल है।
यह बाहर के उत्पाद में संरक्षण के लिए
मिलाते हैं।
*यह रक्त की अम्लता बढ़ाता है।
*यह दिल तक आसानी से पहुँचकर सूख कर नसों में जम जाता है।
*यह सूखकर घातक हो जाता है।
*अत:डिब्बा बंद वस्तु न खाएं।
*पहले इलाज करवायें ,
सामान्य सिथिति आने पर केवल परहेज करें।
*मेहनत के कार्य जरूर करें ,पानी भी खूब पिएं ।
*फिर परहेज करें।
**आहारवेद।

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