बचपन में जब जन्माष्टमी आई,
महीनों पहले धूम मचाई,:)
छाना बुरादा और,
कई रंगों की भूमि बनाई, 🙂
इन्तजार करते,;)
जन्माष्टमी आई।:)
हाथी घोड़े जेल पालकी,
सुरंग में से रेल दौड़ाई।;)
उत्तर से उतरी गंगा,;)
यमुना पर कारागार बनाया।;)
कदंब पर कृष्ण ने बांसुरी बजाई।;)
खेत खलिहान गांवों में,
जंगल की छांव में।;)
भीलों नै ढोल बजाए।;)
यमुना के जलपोत माल ढुलाए।;)&nसड़क पर मेले में सेठ सिठानी दावत उडाएं।;)
कान्हा देखो कुंज ग ली में,गैय्यन संग धूम मचाए।:)
कृष्ण जन्म की झांकी देख,:)
हम सब बच्चे मन ही मन खूब
हर्षाएं।
क्या चाहा यह सब बस कान्हा को ही समझ में आए।:):):):)
कृष्ण को हर। कर्म का
समर्पण।
नृपनायक दे वरदान हमें, तेरे चरणों का वंदन सदा शुभ हो।
बडो भरोसो थारो,
सांवरा,
कान्हा कान्हा हम तो पुकारें,
अब तो मेरे बच्चों के जीवन भी संवारो।
क्योंकि
(मो-रि
संवारि हि –
सो सब भांती,
जासु कृपा नहीं कृपां अघाती।।
जासु )