घर

आज, पहले या पुरातन काल सबमें जीने के लिए हवा पानी और भोजन बस ये तीन आवश्यकताएं है।
इंसान इसके अलावा जो भी करते हैं, उसे सभ्यता कहते हैं। पर ये हर नजरिए से असभ्यता ही है।प्राकृतिक आपदाओं व शत्रुओं और जंगली जानवरों से बचने के लिए इंसान घर बनाता है और अपने घर का कूड़ा कूड़ेदान में न डालकर, पडोसी के घर के आगे फेंक देता है।
फिर सड़क
पर निकलकर जोर जोर
से चिल्ला ता है कि पता नहीं कैसे लौग हैं जो दूसरे के घर के आगे कूड़ा फेंक देते हैं।ये हमने स्वयं देखा है।फिर गाली-गलौच करके कहते हैं कि बताओ इतना लडते हैं कि मेरा रक्त दाब बढ़ गया है। कुछ लोगों का शगल ही है झगडा करना।
इनके कारण शहर व सड़क सब गंदा रहता है।
*ये सोचते हैं कि इन्हे किसी ने देखा नहीं। पर ऐसा नहीं है कोई इनकै मुंह लगकर अपनी इज्जत खराब नहीं करना चाहता है।वरना गाली-गलौच करने में देर ही कितनी लगती है।
क्या यह एक स्वच्छ मानसिकता है? क्या इस तरह स्वच्छ इंडिया का निर्माण संभव है?

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