एक बड़ा देश, बहुत बड़ा। इतना कि उससकी सीमाएं समुद्र में खुलतीं थीं।पर उस देश का हर निवासी, केवल एक ही इच्छा रखता था। वो अपने, पडोसियों को नीचा दिखाने का यत्न करता रहता था।अपना घर बड़ा सा बनाकर नौकर रखना हरेक का शगल था।हरेक अपने क्षेत्र का राजा।।समुद्र पारकर बाहरी लोगों ने किनारे रहने वालों को तरहतरह के सामान व रत्न देकर फुसलाया।समुद्र तो वहाँ भी थे, रत्न भी थे, पर उन उपहारों ने उसको भरमाया।
धीरे-धीरे उसने पैर जमाए।उसको उखाड़ फेंका और स्वयं वहाँ का बादशाह बन गया।
अपने आने के लिए मार्ग की पहचान बनाई। जो गेटवे औफ इंडिया कहलाई।
फिर भी उसको समझ न आया।अपने को राजा कह,
पडोसी को अपनी सेना से डराया, धमकाया।
आपस की लडाई में, बाहरी ने पैर जमाया।
उसके घर में, उसी को गुलाम बनाया।
उसको नौकर बना कोड़ा लहराया।
पर वो फिर भी समझ न पाया।
जब आजादी समीप थी, कुछ ने फिर कुचक्र चलाया।
गाय की चर्बी का भ्रम फैलाया।
और अहिंसा का चक्कर चलाया।
और नाम बदल सबकुछ पाया।
सब भूल गए, कर्म करना है,
मोहरा नहीं बनना है।इतिहास जानते हुए भी, किसी ने इतिहास नहीं खंगाला। नेताओं की जीहुजूरी में जीवन बिता डाला।
रैलियां निकालीं, पिट ते रहे।
मरते रहे।
नेता राज करते रहे, कुर्सी पर बैठे चैन की रोटी खाते रहे।
रैलियों में मरने लोग जाते रहे।
क्या कभी किसी ने सोचा,
कि जहां हर पडोसी दूसरे से चिढेगा वहां दुश्मन राज करें गे।
अगर अच्छा होगा कि वह यह न देखे कि उसके पास क्या है?
यह देखे कि…
देश है तभी हम हैँ। उसके लिए पढकर फैक्टरी लगाएं।
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