ये परंपरा सही नहीं है पर, आज भी स्त्री ने ही इसे शुरू किया है। प्राचीन द्रौपदी ने अपने बच्चों को एकता का पाठ तो पढाया,पर अंध मातृभक्त भी बनाया।
जिसका गलत होने के बावज़ूद , अर्जुन विरोध नहीं कर पाया।
आज पुनः वही हालात हैं। कन्या भ्रूण को पैदा न होने देने के लिए, बुजुर्ग महिलाएँ जिम्मेदार हैं।
अब यह देखकर कोई भी अपनी बेटीऐसे घर में नहीँ देना चाहता है।जिस घर की बेटी की
सुरक्षा न हो वहाँ दूसरे की बेटी व उसकी संतान कैसे रह सकती है?
वही हालात हैं, पहले मातृभक्त, अब
मजबूरी।