भगवान

इस पर बहुत बहस होती है, आखिर कौन है भगवान्?
आज इस बात पर मेरे बेटे ने भी पूछा कि हम राम को ही भगवान् क्यों कहते हैं?
चलो हम कोशिका से पहले जाते हैं।कोसरवेट।, जीवाणु,विषाणु।
इसके बाद कोशिका। चलो अमीबा से शुरुआत करते हैँ।
एक अमीबा बन गया।हम कैसे कहेंगे,कि वो मर गया या वो जिंदा है?
ये तो जब वो चलेगा नहीं, निश्चल हो जाएगा।
(मतलब उसमें ऊर्जा नहीं बचेगी।जब उसका एक कौशीय शरीर विकारों से भर जाएगा और ऊर्जा को स्थान नहीं बचेगा। ऊर्जा बाहर खुले में जाना चाहती है।ऊर्जा को बाँधकर नहीं रख सकते हैं। ऊर्जा चाहे कैसी
ग-ति करती है तभी तो उसका नाम ऊर्जा है। विकारों से भरे शरीर में स्थान न बचने से वो शरीर को छोड़ जाती है और  सब कहते हैं, अमीबा मर गया। )

यही नियम समस्त जीवों पर लागू होता है।
ये जगत एक विकासक्रम के
अनुसार चलता है। ये विकासक्रम कोसरवेट से शुरु होता हुआ, पहले एक कोशिका वाले, फिर
बहुकोशीय जंतुओं व पादपों तक चलता है।ये जंतु बिना हड्डी के होते हैं। इसके बाद हड्डी से बन जंतु आते हैं। यही तो विज्ञान है, ये विकासक्रम भी मत्स्य से ही प्रारम्भ होकर आदमी पर समाप्त होता है।पर कोई विज्ञान पढ़ ना ही नहीं चाहता है।
आगे इस ऊर्जा का
जो संचालक बन कर अपने अनुसार घुमा ले, वही भगवान्(भं-भूमि, ग-गगन, व-वायु, अ-आकाश, न-नीर), ध्यान योग के कितने उदाहरण देखने को मिलते हैं। इन पांच से मिलकर कार्बोहाइड्रेट बनता है, जो इस शरीर के निर्माण मे लगता है। जो अणु, परमाणु से बनता है। जिसके तरह तरह से विघटन से ऊर्जा बनती है।
गीता रामायण या किसी पुराण में कभी नहीं कहा कि मुझे पूजो।
पर
इंसान भी आरामतलब व स्वार्थी है।
उसे मालूम पड़ गया कि
फलां फलां दुनियां को अपनी ताकत से घुमा सकता है। डायनैमोजादूगर की तरह रूप बदल सकता है व कुछ भी बना सकता है। फराडे की तरह, दीवार पार कर सकता है। हवा में उड़ व पानी पर चल भी सकता है। योगी की तरह मन से पुकारने पर सुन कर सभी समस्याएँ दूर कर ससकता है, तो उसने इसको भगवान् कह दिया। और अपने कर्मों से मुंह मोड़ लिया।
जबकि
भगवद्गीता में भी कृष्ण ने कहा है,
कर्म करो।
कर्म किए बिना तोशरीर
का निर्वाह भी नहीँ हो सकता। जन्म लिया है तो कर्म तो करना ही है। पर
अगर तुमसे नहीं हो रहा है तो मुझसे कहो।और अगर मैं करूँगा तो क्या मुझे श्रेय भी नहीं मिलना चाहिए?
(अगर तुम किसी को एक गिलास पानी भी रोज देते हो, तो क्या उसके बदले पैसा और तारीफ दोनों नहीं चाहते? )
कर्म भी सोचकर करो, फल तो कभी न कभी मिलेगा ही।

{(न्यूटन का क्रिया प्रतिक्रिया बल) (दीवार पर सर मारने से सर फूटेगा ही, क्योंकि तुमने जो ताकत दिखा ई , दीवार पत्थर सी व निश्चल है, उसने वो बल वापस कर दिया, सूद समेत और सर फूट गया)} बस वो यही बताता है, यही समझाता है, नहीं तो जंगल राज होता।अब काम करेगा तो श्रेय भी नहीं चाहेगा।
उसने तो ये भी कहा है कि
अगर तुम ये कर सको तो तुम भी मुझ जैसे बन सकते हो।

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