कभी किसी ने देखा है,
कभी किसी ने सोचा है।
हरकोई कहता है,
फेसबुक पर भी आता है। बुढापे की लाठी बनो।
जिसने जवानी में अकड़ दिखाई,
उसी का बुढ़ापा बिगडा भाई।
जिसकी संतान नौकर पालें,
वृद्धाश्रम में अंत समय वही गुजारे।
नौकर के साथ बीबी घूमे, पति कमा खुश हो रहे बेचारे।
पढने को विदेश भेजकर रौब दिखाते धन का सारे।
बेटाबहू विदेश बसे हैं, बंगले में दम तोडते मां बाप सारे।
पैसे का रौब दिखाया, पडोसी भी बने बेगाने।
गांवों में उतरन बांटकर, एन जी ओ से धन बना रहे
,वृद्धाश्रम है शौक इन्ही के,इनके किटी सदस्य जब मिले
वृद्धाश्रमों में, मुंह पल्ले से ढ़क,छि प र हे बेचारे।
जब संस्कार यही दिए हैं तो क्या कर सकते हैं दुनिया वाले।