यात्रा संस्मरण

सन् 1994का वाकया है। असल मे हम याञाएं बहुत करते हैं। हर बार कहीं न कहीं कुछ ऐसा होता ही है जो हमें अपना आभास दिलाता है।
हम  अपने प-ति व बच्चों के साथ ऊटी के एक होटल में ठहरी थी।  उस के एक तरफ पहाड़ था। पूरे दिन की थकान के साथ हम सब जब रात मेंसो रहे थे, तब अचानक मेरी बेटी ने पानी मांगा। पलंग के पास ही बल्ब का बटन था। जैसे ही नींद खुली,तो जो देखा, वो सोचकर तो आज भी हम सब
सिहर उठते हैं , सामने एक भेड़िया खडा था।उसकी इतनु बडी पूंछ।  बस मुंनहीं देख पाए शायद आहट होते ही वह लौटने के लिए पलटा होगा।उस दिन
शायद वो मेरे बच्चों को ले ही जाता।उठकर देखा पता लगा, कि पहाड़ की तरफ की खिड़की खुली थी । उसके बगल में बस 7इंच पर पहाड़ था। और वो उस पतली सी जगह से ही वापस लौट गया।ऐसा सिहरा देने वाला अनुभव, कि बस।। लगा कोई तो ताकत है जो हमारा ध्यान रखती है व बचाती है।
अब तो जब भी कहीं जाते हैँ, पहले जगह देखते हैं , तब ही लेते हैं अन्यथा नहीं।ये मेरा यात्रा संस्मरण कैसा लगा।
कन्याकुमारी ब्लॉग भी याञा संस्मरण ही है, अंडमान व गंगा सागर भी।
कृपया शेयर करें।

अनजान रक्षक  भी

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s