आज ही मेरी एक से बात हुई।
उसने बताया, पता नहीं
क्या बात है?
मेरी बहन के दोनो बेटों के कोई बच्चा नहीं है?
आजकल की आधुनिक जीवन व खानपान सब अलग है।
पहले हर भोजन घर में बनता था। आज आर्डर
कर दो घर आ जाता है।
हरेक का स्वरूप बदल गया है।
हर चीज
रासायनिक है।
तेल भी,
जो खुला छोड़ दो तो गर्म करने पर चटकता है।
(सरसों, तिल व नारियल
का तैल प्रयोग करें।)
पानी
घडे के स्थान पर फ्रिज का।
चाय,
दूध, सूप,
जूस, कॉफ़ी
सब गर्म पानी में मिलाओ
और
पी जाओ।
कभी ताजी पीकर अंतर समझने की कोशिश करें कि ताजी कितना गाढ़ा है।
हर चीज पॉली पैक बंद।
इसमें रखी वस्तु 100%जर्म्स वाली होती है।
कभी सूंघकर देखें।
अब ताजी की बात ही अलग है।
फल खाओ।
बीज जमीन में मिट्टी में दबा दो।
पेड उग आएगा कभी न कभी।
रसायन में डिब्बा बंद खाना तो बासी होता ही है।
।(सब कहते हैं हम तो कभी रखा खाना नहीं खाते हैं पर डिब्बा बंद क्या बासी नहीं है। फैक्ट्री ससे कब कि बंद कर निकला, बिना रसायन के ताजी रह नहीं सकता है। कभी घर में करके देख लें। ये अनावश्यक रसायन नुकसान करते हैं। )
रसायन भी शरीर को पता नहीं कौन सा नुकसान पहुंचाते हैं।
डॉ की रिपोर्ट सही आती है, पर बच्चे नहीं होते हैँ।
कहीं ये गुर्दे दिल व जिगर के साथ प्रजनन तंत्र पर भी तो असर नहीं कर रहे हैं?
अगर आप भी इन आदतों के गुलाम हैं तो संभल जाएं उत्तर भारतीय भौजन देखें व ताजी बनाकर खायें
व औरों को शेयर करें।
इसका प्रभाव जनसंख्या पर पडेगा।
जनसंख्या कम नहीं होनी चाहिए। बड़े परिवार के बच्चों को कभी देखें, कैसे निडर होते हैँ।
अकेले बच्चों को कोई भी डरा धमका देता है।
आज की स्त्री स्वार्थी हो गयी है।
उसे कष्ट नहीं होना चाहिए बस।
अकेला बच्चा चाहे हे कितना परेशान हो उसका क्या? मतलब?