आजकल भी और पुराने समय से कहा जाता है कि धन जमा करने में स्त्री का कोई जोड़ नहीं।
पर किसी नै कभी ध्यान दिया तो पता लगता है कि पैसा उडाने में सबसे ज्यादा स्त्री का ही हाथ होता है।
क्या ये खास उस वर्ग की, जो अपने
को उच्च कहता है
प
ढना व बौलना भी चाहे ठीक से नहीं आता हो पर,
पैसा आ गया तो वर्ग उच्च।
प-ति ने नेता बना दिया तो,
वर्ग उच्च।
बच्चों को आया देखे तो वर्ग उच्च।
घर में नौकरों की फौज(चाहे बीबी भी नौकर से सैट)पर वर्ग उच्च।
ढेरों मकान, पर नौकर ही किराए पर उठा रहे हों, पर वर्ग उच्च।
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ढे
रों वाहन, नौकर चाहे मालकिन को बगल में दाबे घुमा रहा है, पर वर्ग उच्च।
ढेरों ऊटपटांग व भद्दे कपड़े, चाहे उम्र या शरीर के हिसाब से न हों,
बात बात पर गाली देती व सामान्य का मजाक उडाती, पर उच्च वर्ग।
पर उच्च वर्ग।आज ये फैशन हो पर क्या इससे स्वास्थ्य व शालीनता
क्या ये वह वर्ग ही तो नहीं है जो एकदम पैसा आ जाने से अपने को उच्च वर्ग का कहता है?
इतना सामान क्योकि नौकर रखने पडें,?
काम करने मेंकितनी
देर लगती है?
गर्मी में जमीन पर पोंछा लगाकर लेटने से जो ठंडक मिलती है वो क्या वातानुकूलित वातावरण में है?खाने के समय केवल आधा घं मे खाना तैयार नहीं होता क्या?
है?
रहने को घर
, खाने को दाल रोटी ही। पीने को पानी ही सोने को जमीन, पलंग या तख्त ही।बचा क्या पहनने को कपड़े ही।
क्या ये वही वर्ग तो नहीं,
जोअपने पैदा हुए बच्चों को किडरं गार्डन में भेज देता है व किटी के नाम पर अंजान लोगों के साथ पार्टी करता है?
क्या ये वही तो नहीं, जो अपने मांबाप को वृद्धआश्रम में छोड़ देता है?
क्या ये वही तो नहीं, जो जन कल्याण के नाम पर एन जीऔ
बनाकर 5/5रू के चिप्स व चॉकलेट बांटकर सडक पर फोटो खिंचवाकर धन कमाता है?
क्या ये वही तो नहीँ ,
जो घर में हर काम झाडू पोंछा, बर्तन, सामान की धूल साफ करना, पेड़ों में पानी देना, कार साफ करना आदि के लिये नौकरों की फौज रखने में शान समझता है?
क्या ये वही तो नहीं,
जोबिना जरूरत , सामान खरीद करके घर को अजायबघर मे बदल देता है?
कहीं ये