भंडारा

लोग धन प्रदर्शन के लिए करतेहैं।  आजकल जरा सा पैसाआया नहीं, बस नुमाइश शुरू। 

 एक बालक थोड़ा साचावल लेकर सबसे कहरहा था कोई मेरे लिए खीर बना दो। एक वृद्धा ने थोडे से दूध में चावल चूल्हे पर चढ़ा दिया।
 ऐक गरीब वृद्धा ने दयाकर उसका मन रखने को एक चम्मच दूध
में चूल्हे पर पकने रखदी।


बालक पूरे गांव को खीर की दावत दे आया।



सब हंस कर सबसे बड़ा बर्तन लाए।
उन्हें वृद्धा की गरीबी मालूम थी।  
वृद्धा छिपाकरथ ोडी खीर चख रही थी, अचानक बालक आ गया।
वो पटे के नीचे छुपा दी।

अब तो बर्तन खाली नहीं रहा खीर उफनती रही व सबने छककर खायी। 
अगले दिन सब जगह जहां जहां

 घ र में खीर थी। वहां सब जगह धन ही धन। 

सब धन ही धन। जेवर ही जेवर।
पर जो होने जा रहा था वो क्या मालूम था?

सबको क्या मालूम था कि वो बालक नहीं गणेशजी हैं।
सही अर्थ में किसी जरुरी काम के लिए धन या मदद देना ही भंडारा है।

हम लौट रहे थे ,
मार्ग में हमें एक भाभीजी जबरदस्ती 5पूड़ी, आलू की सब्जी, रायता व हलुआ दे दिया।। हमने मना भी किया कि हम अभी खाकर आ रहे हैं।
अब बेकार जाएगा।
वो तो शेखी बघारने लगीं। अरे मेरी मील है तेलकी। वहाँ पर मजदूरों को भंडारा खिलाय ा
था।आप भी ले जाइऐ।
सामने मजदूर रहते हैं, ये नहीं किउ न्हे ही दे देती ।
इतना ही है पैसा तो मजदूर को तनख्वाह व बच्चों की पढाई ही दें वही काफी है।
पर नहीं बताना तो है पूरी कॉलॉनी को।ये भी तमाशा सा लगता हो

भंडार का सही अर्थ य

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