सृष्टि जिसके बिना अधूरी है,
पर बढते बढते खुद का दुरुपयोग करना शायद स्त्री की आदत बन गयी है।
दिन भर फालतू बैठकर बुराई करना,
फिर कहना कि फलाना हमसे कह रहा था।
ये एक समान्य दिनचर्या का एक अंग बनता जा रहा है।
सुबह उठकर इधर-उधर टहलना, खाने के बाद भी।
पूरे दिन बोलते-बोलते थकती भी नहीं हैं।
आज भी और शुरु हो जाए बस एक बार,
जब तक भट्टा नहीं बैठा देती,
शांत ही नहीं होती,
कुछ ही गंभीरता से कार्य करती हैं।
जिस राज्य,
देश या घर में इनका शासन हो,
चाहे वो कोई भी हो।।राजनीती व रोजमर्रि की जिंदगी में तो ही है, न हो तो एक बार ससरससरी नजर सब की दिनचर्या पर अवश्य फिराऐं व अगर हो तो टिप् पणी में बताऐं भ ी।
ऐसा नहीं है कि सब ऐसी ही हों।
ऐसा क्यों?