कुछ को लगातार बोलनै की आदत होती है,
उन्हें होश नहीं रहता है कि
कब क्या बोलना है।
क्योंकि मां ने चुप रहना,
सिखाया ही नहीं।
अपने बच्चों को फालतू बोलने की कला न सिखाऐं।
कभी जबान को लगाम देना नहीं सिखाया।
एक बंदी को हमने कहते
सुना,
कि
हम तो जब मेरे पती अपने किसी भी दोस्त के जाते हैं
तोमैं जरूर जाती हूं
खूब तीन चार घंटे बातें भी करके आती हूँ।
पर पहले तो उनकी पत्नी व बैठतीं थीं, पर अब तो आतीं ही नहीं है।
न ही घर जाने पर नमस्ते करतीं है, न ही बुलाने पर आती है।
वो अपने आपको जाने क्या समझतीं हैं कि बोलना व
आना ही बंद कर दिया।
उन्हें ये नहीं समझ आया कि वो ठलुआ हैं,
अब एक दिन की बात हो तो चलता है।
रोज पति के साथ लटक कर चलो, आदमियों की भी बातें होतीं हैं,
कुछ बंदे अपनी पत्नी को कभी भी कुछकहते ही नहीं हैं ।
जिससे उनकी इज्जत उतरने लगती है व
तब पता लगता है
जब अगला संबंध तोड़ लेता है।
ऐसी नौबत न आने दें,
कहीं आप भी इसी आदत की शिकार तो नहीँ हैं।