श्रीकृष्ण कहते हैं
भक्त मुझे केवल 4परिस्थिति यों में ही पुकारता है:
आर्त,
जिज्ञासु
साधक
और
अर्थाथी।
श्रीकृष्ण कहते हैं कि परेशानी, , मुझे जानने की इच्छा ,
मेरी साधना,
या लाभ पाने की इच्छा,
ही मूझे पुकारने को मजबूर करती है।
मैं परम पिता हूं।
तुम मुझसे कहो,अपना कर्म करो,
पर यह ध्यान में रखकर,
कि
तुम जो भी करोगे,
तुम्हारे अनुयायी वही करेंगे।
जो तुम करोगे,
उसका फल तुम्हारी संतान भी पायेगी,
मित्र भी व कुटुम्ब भी।
इसलिये कर्म जरुरी है और वो भीअच्छा।
लोग कहते हैं,
मैंने कौन से पाप किए थे जो ऐसा हुआ?
क्या राम राजा ने होते हुए भी अपने पिता दशरथ के कर्मों का फल नहीं पाया?
क्या कृष्ण ने अपनी मां को कंस की सबसे प्यारी बहन होने का फल नहीं मिला?
क्या सम्राट अशोक के अत्याचारों से तंग आकर उसके बेटे-बेटी घर व राज्य छोड़कर नहीं गये?
क्या द्रौपदी के हंसने को मौका बनाकर दुर्योधन ने महाभारत नहीं की?
क्या चाणक्य ने अपमान के कारण ही चंद्र गुप्त को शासक बनाया?
क्या आज हिंदू व सवर्ण पर हुए
असहिष्णु कर्मों व आरक्षण के कारण ही मोदी व योगी जनता के साथ नहीं खडे हैं।
कृष्ण के अन्य ब्लॉग भी हैं जिनमे योग का पूरा विस्तृत वर्णन है।
अपने विचार अवश्य दें।