क्या आपने कभी देखा है,
कि पेड़ पौधे बातें करते हैँ।
वो महसूस करते हैं।
आप पेड़ पौधे लगाएं।
सबको एक जगह रखें व केवल एक को अलग व दूर जहां से बाकी सब दिख रहे हों,
फिर आप देखेंगे कि
आकेला पौधा पहले तो हलका हरा होगा,
पर बाद में मुरझाने लगेगा।
आप उसपर ध्यान न दें, तब भी वह मुरझा जाएगा, वैसे भी आपने कांटेदार पौधे देखे होंगे,
लताओं को भी देखा होगा, उनमें तन्तु निकले होते हैं।
वो स्पर्श की
अभिव्यक्ति है।
जब ककोई पतला बेलदार पौधा अपने आसपास कोई सहारा महसूस करता है,
( आंखै तो होती नहीं हैं,)
तो उस पर चिपककर आगे बढ़ने की कोशिश करता है।
मनी प्लांट, अमरबेल, गिलोय, टमाटर।कीटभक्षी पौधे
ये पौधे भी अपने स्पर्शकों द्वारा खाना खाते हैं।
घटपर्णी,ड्रॉसेरा(इनमें सुंदर स्पर्शक होते हैं घट व तल पर,
जिसपर कीट बैठता हे व ढक्कन बंद व घुंडी घूमकर बंद कर देती है
व कीट को खा लेती है।)
तुलसी भी ऐसी ही हो।
हमने बहुतों को देखा है कि वो कहते हैं,
उनके हाथ से पेड़ नहीं लगते हैं। जो कहीं न कहीं अपनी नफरत पौधों के प्रति रखते हैं, उनसै पौधे नहीं लगते हैं।
इसीलिए हमेशा खुश रहें।