फेसबुक पर अपना बचपन ढूँढ़ते जिन्दगी की शाम हो गयी।
न जाने कब ये उम्र तमाम हो गयी।
लोगों को रश्क है कि हम बडे क्यों हैं,
उन्हें ये अहसास नहीं, कि बहु तों को ये भी नहीं मिलती।
फेसबुक पर अपना बचपन ढूँढ़ते जिन्दगी की शाम हो गयी।
न जाने कब ये उम्र तमाम हो गयी।
लोगों को रश्क है कि हम बडे क्यों हैं,
उन्हें ये अहसास नहीं, कि बहु तों को ये भी नहीं मिलती।