चारों तरफ सुनसान,
भयानक सन्नाटा पसरा हुआ, एकदम खामोश जैसे वहाँ कोई रहता ही नहीं……… आवाज लगाई, …….सब झरोखे बंद।
अंदर से एक वृद्धा प्रगट हुई।
अरे ये तो उमर से पहले बूढी हो गयी। बेटा बेटी बाहर ही पढकर, वहीं के निवासी हो गये।
बाहर ये हाल है, भारतीयों को भगाया व. मारा भी जा रहाहै।
क्या आज की व सरकारेंपीढी व अभिभावक ये समझना ही नहीं चाहते हैं कि अपने देश में रहकर भी धन कमा सकते है।
क्या बाहर जाना बहुत जरुरी है,
फिर अचानक जब भगाए
जाओ तो कहीं भी ठौर नहीं?
हर घर का यही हाल है। ऊपर से एक ही या दो ही बच्चे।
क्या खंडहर के लिए मकानों का टूटना ही जरूरी है? क्या ये मन के खंडहर नहीं हैं जो समय से पहले ही समाप्त हो रहे हैं?
क्या आज की पीढी इतनी नासमझ है कि अपना भला बुरा सोचने की क्षमता ही नहीँ है?