रात होते ही समस्त शोर धीरे-धीरे बंद होने लगता है व खामोशी पसर जाती है।इससे वो आवाजें साफ सुनाई देतीं हैं, जो भीड व दिन में पता नहीं लगतीं हैं। जैसे मेढक की टर्र टर्र, झींगुर की झुनझुन, कुत्तों का भौंकना, रेलगाड़ियों की सी,टी, घर
लौटते चहचहाते पक्षी, बच्चों को एकत्र करते जानवरों के झुंड,
और थककर लेटने पर, जो खाली थे, सोच के घोड़े दौड़ाते हैं, व धीरे-धीरे
सबसे ज्यादा रात ही -सबसे ज्यादा शोर करती है। व दिन खामोश