एक बार भगवान् विष्णु व लक्ष्मी जी में बहस हो गयी।लक्ष्मी जी ने कहा धन ज्यादा प्रभावी है तो प्रभु ने कहा धर्म।
लक्ष्मी जी ने कहा, आप चलें मैं आती हूं। प्रभु एक नगर में गये।एक बड़े पेड़ के नीचे कथा कहने लगे।धीरे-धीरे हर जगह से लोग आने लगे व भीड़ जुटने लगी। काफी समय बीत गया। लक्ष्मी जी को ध्यान किया। वो अंतर्ध्यान हो गयीं। प्रभु ने सोचा चलो जब आएगी तो चौंक जाएगी ये देखकर कि धर्म का प्रभाव कितना बड़ा है।
काफी समय बाद, एक बुढ़िया नगर में आयी।सब कथा सुनने जा रहे थे।एक के घर जाकर बुढ़िया ने दरवाजा खटखटाया व कहा बहुत दिन से भूखी हूं
कुछ खाने को दे दो।मकान मालिक मनाकरने जा रहा था कि चलो भागो, मुझे कथा सुनने जाना है।उतने में ही बुढ़िया ने अपने थैले से बर्तन निकाले, अब वो खाना बनाकर खिलाने लगा। जाते वक्त बुढ़िया बर्तन छोड़कर चली गयी। अब दूसरे दिन मभी उसने यही किया। धीरे-धीरे लोगों ने आना कम कर दिया। अबप्रभु को चिंता हुई, न तो लक्ष्मी का पता लग रहा है कहां गयी, इधर ये भीड भी आनी बंद। अब वो कथा कहने के पहले एक के घर गये व पूछा, कथा सुनने क्यूँ नहीं आ रहे हो तो जवाब मिला। अब नहीं आएंगे। ससबसे पूछा तो पता लगा, नगर में एक बुढ़िया आई है वो खाना खाने के लिए शुद्ध सोने के बर्तन लाती है व जिससके घर खाती है, वहीं बर्तन छोड़ जाती है। कथा सुनने से हमें क्या दिया। अगर वो फिर आयी तो।प्रभु समझ गये, लक्ष्मी यही है व माया दिखा गयी। उन्होने लक्ष्मी से कहा चलो तुम्हारा तर्क सही है। चलो घर चलें। व दोनों बैकुंठ चले गये। े