शिव माने मंगल
जो अजन्मा पाया।हमेशा से एक त्रिशूल हाथ में, उसमें डमरू,,
बाघाम्बर पहने, मृगासन बिछाए, भाल पर चांद,जटाओं मे गंगा, गले में सांप।जोकभी किसी का अहित नहीं होने देता है, गुरू बनकर राह दिखाता है।हमेशा इतनायोग करना व ध्यान में कि पसीने से रेवा नदी बह निकले।
इसकी जटाओं में से पहाड़ों से उतरती गंगा का जल भी इतना पावन हो जाता है कि सालों रखने के बाद भी खराब नहीं होता।
शिव का दिगंबर रूप भी
जटाओं से ढका रहता है,।
सृष्टी के ओंकार,त्रिगुण शिवलिंग जिससे सृष्टी की रचना हुई।