जब मेरा घर बन रहा था तब, हमने जानवरों में जो तनाव देखा,
वो कभी भुला नहीं सकते।
हर तरफ भगदड़ का माहौल कुत्तों , मोर, बुलबुल, नीलकंठ,कठफोड़वा, गलगलीया , गौरय्या, गिरगिट, तोते, बगुले , स्वान, सारस, चींटी सबमें अव्यवस्था।
सब ओर शोर था।वो अपनी-अपनी लैंग्वेज में बचाओ बचाओ आवाज़ लगा रहे थे।उनके घोंसले —-
ये हमने रोज देखा।मकानों के बनने का काम शुरु हो गया था। जेसीबी चलती तो बहुत से जानवर मर जाते या उनके घर टूट जाते।सब शोर करते, आसपास उडान भरते। बिल भी ढ़ह जाते।
सांप व अन्य भी।
अभी भी कहीं बिल हो तो
इतनी तरह के-। गिन न सकें व पूरे घर में।चमकीले रंगों की पराग खाने वाली पक्षी नीली भूरी काही,व चमकीले रंग में ।
क्या इंसान को इतना बड़ा घर बनाना जरूरी है?
क्या जानवरों का दुख, दुख नहीं है?
क्या हरेक को अपने घर में एक बड़ा सा बाग नहीं देना चाहिए?
हमें ऐसा लगता है जैसे हम इनसब के साथ रहने आए हैं।
ये सब पहले इन सब जानवरों का ही तो था। इसीलिये हमने अपने घर में बाग बनवाया है।वैसे भी ज्यादा बड़ा घर नहीं होना चाहिए। घर उतना ही बड़ा हो, जहाँ एक रहने वाले का चेहरा नजर आए।
छोटे घर में रहने व कम सामान रखने वाले अधिक उम्र के होते हैं।क्योंकि सामान ज्यादा होने से बस या तो सफाई करते रहो या—-
बड़े-बड़े महलों के ही तो खंडहर देखे हैं। हमारे घर के पासजंगल है व हमारे नेबर के छोटे-छोटे घर हैं,
जो सात आठ पीढ़ियों से करीब
150/200सालों से उसी जंगल में रह रहे हैं।
वहीं झोपड़ी बनी हैं, अब पक्का करारहे हैँ पर परंपरा वही है।और उम्र भी 90 व उसके ऊपर ही।
हमने अपने घर में जो बाग बनाया है, जिसमें बादाम, अंगूर, तेजपत्ता, अशोक, गुलाब, हरश्रंगार, बॉगेनवीलीया, मोरपंखी, आम, सदाबहार, जामुन, नीबू पेड़ लगाए हैं। ये खग हमारे घर आ सकें।
और अब इनने कलरव करना शुरु कर दिया है।
पहले तो इनसबकी दुख भरी आवाजें हमें सोने ही नहीं देती थीं। हमने मजदूरों से पूछा तो उनके बच्चों ने बताया,
ये सब यही ं इकट्ठे होते हैं, पूरी कॉलॉनी में घर बनाने का काम चल रहा है,
बच्चों ने कहा, पेड लगा दो।
हमने वहाँ पेड लगाए अब सब आवाजें धीरे धीरे-धीरे बंद हो गयीं।
सबने अपने घर भी बना लिये हैं।
लोग कहते थे,
रात में भूत आते हैं,
पर नहीं,
ये उन जन्तुओं की दुख व भरी आवाजें हैं,
पंखों की बेचैनी भरी फड़फड़ाहट हैं, वो दर्द भरी आवाजें , जो इंसान करता है।
हमारा बाग इतना बड़ा है, जहाँ सब खग उसमें आ सकें।
© [Reena Kulshreshtha] and [glimpseandmuchmore.wordpress. com], [2017]. /b>